Friday, December 14, 2018

एक्सप्लोरिंग बर्ड़स इन बांसवाड़ा’ कार्यक्रम जारी

 कूपड़ा तालाब पर हुई बर्डवॉचिंग, यूरोपीयन देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी दिखें 
बांसवाड़ा, 25 नवम्बर/ जिले की समृद्ध नैसर्गिक संपदा में पाए जाने वाले स्थानीय और प्रवासी परिंदों की जानकारी को जन-जन तक पहुंचाने और इसके माध्यम से बांसवाड़ा को पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने की दृष्टि से जिला पर्यटन उन्नयन समिति व वागड़ नेचर क्लब के ‘एक्सप्लोरिंग बर्ड्स इन बांसवाड़ा’ कार्यक्रम के तहत रविवार को कूपड़ा तालाब पर बर्डवॉचिंग की गई। 
शहर के समीपस्थ बर्डवॉचिंग साईट कूपड़ा तालाब पर क्लब के वरिष्ठ सदस्य व नगर स्कूल के प्राचाय्र सुशील जैन, वाईल्ड लाईफ फोटोग्राफर भरत कंसारा, जनसंपर्क उपनिदेशक कमलेश शर्मा, पक्षीप्रेमी भंवरलाल गर्ग व जय शर्मा के दल ने बर्डवॉचिंग के साथ पक्षियों के बारे में जानकारियां संकलित की। इसके साथ ही इन स्थानों पर पाई जाने वाली प्रजातियों की फोटोग्राफी भी की गई। बर्डवॉचिंग दौरान मध्य यूरोपीयन देशों से आने वाला सफेद आंख वाला सुंदर पक्षी फेरिजुनस पोचार्ड बड़ी संख्या में दिखाई दिया वहीं मानसून के आगमन से पहले-पहले दक्षिण भारत से आने वाला पाईड क्रेस्टेड कूक्कू जिसे स्थानीय बोली में चातक पक्षी कहा जाता है, भी दिखाई दिया। अपने सर पर आकर्षक कलगी वाला यह पक्षी अब वागड़ में बारहो मास दिखाई देने के कारण स्थानीय पक्षी भी माना जाने लगा है।  इसके अतिरिक्त यहां पर बड़ी संख्या में स्थानीय पक्षी स्पोट बिल डक, कूट्स, मुरहैन, किंगफिशर, परपल हैरोन आदि भी दिखाई दिए।
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वागड़ नेचर क्लब का ‘एक्सप्लोरिंग बर्ड्स इन बांसवाड़ा’ कार्यक्रम शुरू

सर्दियों की दस्तक के बाद भी जलाशयों पर इक्का-दुक्का प्रवासी पक्षी  
बांसवाड़ा, 18 नवम्बर/ जिले की समृद्ध नैसर्गिक संपदा में पाए जाने वाले स्थानीय और प्रवासी परिंदों की जानकारी को जन-जन तक पहुंचाने और इसके माध्यम से बांसवाड़ा को पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने की दृष्टि से वागड़ नेचर क्लब का ‘एक्सप्लोरिंग बर्ड्स इन बांसवाड़ा’ कार्यक्रम रविवार से प्रारंभ हुआ। 
कार्यक्रम के तहत रविवार और अन्य अवकाशों के दिनों मंे क्लब से जुड़े स्थानीय बर्डवॉचर्स द्वारा अलग-अलग जलाशयों पर पहुंच कर पक्षियों की प्रजातियों के बारे में जानकारी संकलित की जाएगी और पक्षियों के संरक्षण-संवर्धन के लिए जनसामान्य तक इसको पहुंचाया जाएगा। 
रविवार को इस श्रृंखला में जिला मुख्यालय के बाई तालाब व कागदी पिक-अप पर पर्यावरणप्रेमी व पर्यटन उन्नयन समिति के संरक्षक जगमालसिंह ने, सुरवानिया डेम पर जनसंपर्क उपनिदेशक कमलेश शर्मा तथा कूपड़ा तालाब पर पक्षीप्रेमी भंवरलाल गर्ग ने बर्डवॉचिंग के साथ पक्षियों के बारे में जानकारियां संकलित की। इसके साथ ही इन स्थानों पर पाई जाने वाली प्रजातियों की फोटोग्राफी भी की गई। आगामी दिनों पर इस पर एक आकर्षक फोल्डर तैयार किया जाएगा व प्रदर्शनी लगाई जाएगी।  
सर्दी शुरू पर नहीं पहुंचे प्रवासी परिंदें: 
सर्दियों की दस्तक के साथ आमतौर पर जिले के जलाशयों पर प्रवासी परिंदों का आगमन शुरू होने लगता है परंतु इस बार अब तक जिले के जलाशयों पर इनकी संख्या में बहुत कम बढ़ोत्तरी हुई है। तीनों तालाबों पर स्थानीय पक्षी कूट्स, स्पॉट बिल डक, डबचिक, जैकाना, कॉमन स्टॉन चेट की संख्या ज्यादा पाई गई वहीं प्रवासी पक्षियों में  गेडवाल, ब्लू थ्रोट, शॉवलर इत्यादि ही देखे गए।    
यह है दिखाई दिए पक्षियों की विशेषता: 
उदयपुर के पक्षी विशेषज्ञ विनय दवे बताते है कि प्रवासी पक्षी गेडवाल यूरोप से आता है और इस बार समूचे वागड़-मेवाड़ में यह बहुत कम संख्या में आया है। छिछले पानी को पसंद करने वाला यह पक्षी घास, घोंघे और छोटी मछलियां खाता है। पिछले वर्ष की तुलना में इसकी संख्या बहुत कम दिखाई दंे रही है।  
पक्षी विशेषज्ञ कमलेश शर्मा बताते हैं कि सुरवानिया डेम पर देखा गया ब्लू थ्रोट सर्दियों मंे आने वाला प्रवासी पक्षी है और यह यूरेशिया से यहां आता है। सर्दियों की शुरूआत में ही इसका आगमन होता है। अपने गले के आकर्षक नीले रंग के कारण अन्य पक्षियों से सुंदर दिखने वाले इस पक्षी की विशेषता है कि ज्यों-ज्यों सर्दी बड़ती है  त्यों-त्यों इसके गले का नीला रंग की सुंदरता उभरती जाती है। यह मादा को रिझाने के लिए आकर्षक नृत्य करता है। 
इसी प्रकार कॉमन स्टोन चेट पूर्व में प्रवासी माना जाता था परंतु अब यह सामान्यतया पूरे साल दिख रहा है। यह घास व सरकंडों के ठूंठ पर ही बैठना पसंद करता है और कीट-पतंगों का शिकार करता है। पंखों के खुल जाने पर इसकी सुंदरता बढ़ जाती है। बार-बार एक ही इलाके में आकर बैठना पसंद करता है। 
शिकारी पक्षी ओस्प्रे एक स्थानीय पक्षी है और यह मछलीमार के नाम से भी जाना जाता है। सूखे पेड़ पर घांेसला बनाता है। इसकी संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है। मजबूत पंखों वाला यह पक्षी गोता लगाकर मछली पकड़ता है। 
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बांसवाड़ा के सुरवानिया डेम पर बड़ी संख्या में दिखी दुर्लभ लाल मुनिया

‘लाल रंग’ की नन्हीं परी को रास आ रही वागड़ की आबोहवा
बांसवाड़ा, 18 नवम्बर--जिले के समृद्ध आबोहवा पक्षियों को रास आ रही है और इसी कारण से इसमें दुर्लभ पक्षियांे की संख्या में भी अभिवृद्धि हो रही है। इसी का ताजा उदाहरण है पक्षियों मंे बेहद सुंदर दिखाई देने वाली लाल रंग की आकर्षक चिडि़या‘ लाल मुनिया’। पिछले दिनों ठिकरियां में मात्र एक संख्या में दिखाई दी लाल मुनिया इस बार सुरवानिया डेम पर दो दर्जन से अधिक की तादाद में दिखाई दी है। जनसंपर्क उपनिदेशक व पक्षी विशेषज्ञ कमलेश शर्मा ने रविवार को बर्डवॉचिंग दौरान लाल मुनिया को देखा और इसके फोटो क्लिक किए। खजूर के पेड़ों पर छिपती, घास के बीजों को खाती और फुदकती मेल रेड मुनिया के साथ ही फिमेल रेड मुनिया, जिसका रंग मात्र पिछे से लाल होता है, के भी फोटो क्लिक किए गए।  
उल्लेखनीय है कि रेड मुनिया दुर्लभ प्रजाति की व शर्मिली मुनिया है। यह गोरैया के आकार की सुर्ख लाल रंग व चमकीली तिकोनी छोटी चोंच वाला सुंदर आकर्षक पक्षी है तथा यह कुछ विशिष्ट प्रकार की घास के बीजों को खाती है। राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के संस्थापक और देश के प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी भरतपुर के डॉ. एस.पी. मेहरा ने बताया कि रेड अवाडवट या रेड मुनिया राजस्थान में कहीं-कहीं दिखाई दे रही है जिसमें प्रमुखतया माउंट आबू, कोटा और मध्य अरावली में इसका फैलाव देखा गया है। वागड़ में वर्ष 2006 से 2010 के बीच हुए शोघों में एक-दो बार ही इसको देखा गया है ऐसे में इस बार प्रजनन काल दौरान इसका दिखाई देना क्षेत्र के लिए सुखद पहलू है। पक्षीविद् विनय दवे बताते हैं कि इसके सुर्ख लाल रंग के कारण शिकारी पक्षी रेड मुनिया का आसानी से शिकार करते हैं। विशिष्ट घास के कम होने से यह चिडि़या कम हो रही है वहीं इस चिडि़या के कम होने के कारण बीजों का प्रकीर्णन नहीं होता व वह विशिष्ट प्रजाति की घास भी कम हो रही है।  
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